हजरत निजामुद्दीन हैं तो दिल्ली है वरना दिल्ली नहीं

उसके बाद इनको हर धर्म के लोग मानने लगे थे। इन्हे लोग वैराग्य और सहनशीलता की मिसाल कहा करते हैं। आपको बता दें की हजरत निज़ामुद्दीन, चिश्ती घराने के चौथे संत थे। वहीं इस महान संत ने 92 वर्ष की आयु में अपने प्राण त्यागे और उसी साल उनके मकबरे का निर्माण शुरू कर दिया गया था।
दिल्ली के पश्चिम में बसे इस दरगाह के भीतर संगमरमर से बना एक छोटा चौकोर कमरा है। वहीं मकबरे को चारों ओर से मदर ऑफ पर्ल केनॉपी और मेहराबों से घिरा है, जो झिलमिलाती चादरों से ढकी रहती हैं।
वहीं इस दरगाह में की गई कारीगरी को इस्लामिक वास्तुशैली एक बेहतरीन नमूना माना जाता है। साथ ही यहां आने वाले लोग अपने मन्नत का धागा दरगाह में बनी जालियों में बांधते हैं।
दिल्ली के लोगो का मानना है की हजरत साहब हैं तो दिल्ली है वरना दिल्ली नहीं है। कहा जाता है की खिलजी वंश का आखिरी शासक कुतुबुद्दीन मुबारक शाह ने हजरत साहब की शान में गुस्ताखी की थी तो कुछ ऐसा हुआ की उसके वंश में कोई नहीं बचा।
फरियादियों का कहना है की यहां आने वाला हर एक शख्स अपनी खाली झोलियां फैला कर आता है और उसे उसे भर कर जाता है। यहां सर ढक कर आना पड़ता है। वहीं इबादत की सूफी परंपरा में धार्मिक गायन और संगीत अटूट हिस्सा हैं।