नहीं बदला मुसलमानों का हाल, IAS 100 में केवल तीन

इसमें मुसलमानों के सामने आ रही कठिनाइयों के बारे में बताया गया था और इन्हें दूर करने की सिफारिश भी की गई थी।
रिपोर्ट ने मुसलमानों की स्थिति एससी और एसटी से भी नीचे बताई थी। इसमें सबसे बड़ी बात यह निकलकर आई थी कि मुस्लिमों की जितनी आबादी है उस अनुपात में आईएएस और आईपीएस अधिकारी नहीं है।
जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार सरकार के डाटा का अध्ययन करने पर सामने आता है कि रिपोर्ट सौंपे जाने के 10 साल बाद भी बड़ा बदलाव नहीं आया है। कुछ मामलों में तो बातें और ज्यादा बिगड़ गई हैं।

आईएएस और आईपीएस के आंकड़े ज्यादा पोल खोलते नजर आते हैं। सच्चर कमिटी ने बताया था कि आईएएस में 3 और आईपीएस में 4 प्रतिशत मुस्लिम हैं। गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार एक जनवरी 2016 को यह प्रतिशत 3.32 और 3.19 हो गया। आईपीएस में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व में कमी का एक बड़ा कारण मुस्लिम प्रमोटी अफसरों में कमी होना है।
सच्चर रिपोर्ट के समय 7.1 प्रतिशत प्रमोटी आईपीएस मुस्लिम थे जो अब केवल 3.82 प्रतिशत हैं। साल 2001 की जनगणना के अनुसार मुस्लिम देश की आबादी का 13.43 प्रतिशत थे जो 2011 की जनगणना के बाद 14.2 प्रतिशत हैं। मुसलमानों की आबादी में 24.69 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वहीं मुसलमानों में लिंगानुपात बेहतर रहा है।