रेप की बढ़ती घटनायें अपाहिज सिस्टम की देन
रायबरेली। देश में क्राइम का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है और उस पर सिस्टम की नाकामी,व्यवस्था की विफलता,संवेदनशीलता का पतन, इन सब की वजह से कानुन से यकीन उठता जा रहा है,रेप पीड़िताएं आम तौर पर न्याय ना मिलने की वजह से खुदकुशी कर लेती हैं, निर्भया से अरुणा शानबाग,और तावड़ू तक का ज़ख्म अभी हरा है .अब जामिया नगर में एक बच्ची के साथ रेपहुआ,बच्ची मौत जिंदगी के बीच में है। इस तरह के निर्मम घटनाओं को दबाने की कोशिश की जाती है,अगर दब नहीं पाते,तो लीपापोती की जाती है,मीडिया का दोहरा रवय्या भी समझ नहीं आता,नेताओं के मूत्र,गोबर वाले भाषणों पर घंटे घंटे पैकेज चलानी वाली मीडिया को यह सब नज़र ही नही आता। महिला आयोग,ह्यूमन राइट्स,बहादुर पत्रकार, निरपेक्ष मीडिया ये सब उसी मुआमले में हाथ डालते हैं जो हाट ईशू बन जाता हैऔर जिस से टी.आर.पी बढ़ती है.
समझ नहीं आता देश में ये हो क्या रहा है। पिछले दो सालों से आम तौर रेप की घटनाओं में बी.जे.पी के नेताओं से जुड़े लोगों का नाम आता रहा है,लेकिन उसे भुला दिया गया। प्रधान मंत्री की चुप्पी भी समझ से परे है। इंसाफ़ की आवाज़ उठाने वाले चन्द सरफिरों की पुकार सोशल मीडिया व जंतर मंतर तक ही दम तोड़ जाती है. देश में हर दिन इंसानियत मर मर कर जिंदा होती है और इन सब की जिम्मेदार हमारा सिस्टम हमारी सामाजिक विचारधारा है।
समाज में औरत को एक इसतेमाल करने का सामान ही समझा जाने लगा है,इसी सोच की वजह से अपराध होता है, फिर सिस्टम अपाहिज हो कर उस अपराधी का बाल बी बांका नहीं कर पाता। नतीजे में दूसरे अपराधियों को शह मिल जाती है। आखिर विधिता,न्यायपालिका,संसद,सरकार, नेता,और जनता मिल कर इस का समाधान क्यों नहीं निकालते? रेप दोषियों के लिए फौरी तौर पर फांसी का आर्डर क्यों नही दिया जाता?
एक की फांसी लाखों के लिए इबरत होगी, इसे क्यों नहीं समझा जाता, देश जिस तरह से अपराधों का गढ़ बनता जा रहा है। मेन स्ट्रीम में आने की चाहत,डिजिटल इंडिया का नारा,सब का साथ,सबका विकास,जैसा विज़न इन अपराधों पर कंट्रोल किये बगैर कभी भी कामयाब नहीं हो सकता। क्राइम मुक्त भारत बनाने के लिये संविधान पर एक बार फिर नज़र डालनी होगी,दुनिया भर के सारे कानूनों के साथ इस्लामी कानून और विचारधारा को भी जहेन में रख कर रेप,चोरी,डकैती,हत्या,रिश्वत, जैसे अपराधों पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून पारित कराना होगा।
यही एक रास्ता है,देश में मानवता,व इंसानियत को बचाने के लिए, तो आइये मिल कर हम इस मुहिम की शुरुआत करते हैं.और सख्त सजा के मांग को दशव्यापी बनाने हेतू सोशल मीडिया सहित रोड पर भी आते हैं। अभियान छेड़ते हैं,इसकी कामयाबी से ही भारत का कल हसीन होगा..?
(ये लेखक के निजी विचार हैं)