कश्मीर में जम्हूरियत सब कुछ, और इंसानियत?
रायबरेली। "45 दिन" कर्फ्यू, 70,हत्या, 6 हजा़र घायल, 15 लाख पैलेट बुलेट का इसतेमाल, 600 लोग आंखों से महरूम, सैंकड़ों औरतें विधवा,और हजा़रों बच्चे यतीम, व अपाहिज. 40000 चालीस हजार नागरिक लापता, 10000 दस हजार मानसिक रोगी, 20000 बीस हजार आत्महत्या।
आप सोच रहे होंगें ये किसी विश्वयुद्ध की रिपोर्ट है या दुनिया के किसी आतंकित देश की, या फिर जहां किसी सुपर पावर देश ने हमला किया हो। नही जनाब रुकिए, ये बोसीनिया,सीरिया,अलिप्पो, इराक़ या हिरोशिमा की नहीं,दुनिया के उस विशाल देश की सुपरपावर सेना के दमन का नतीजा है जिस के "राष्ट्रपिता" अहिंसा के पूजारी थे. जिसके राष्ट्रध्वज की तीलियां,चक्र और रंग देश के अहिंसक होने को बयां करते हैं, जी हां ये हमारे अटूट भारत के एक विजयी राज्य कश्मीर में पिछले 45 दिनों से भारतीय सेना द्वारा किये गये अमानवीय कार्रवाई की एक झलक है, ये आफिशियल लेखा जोखा है अनआफिशियल और क्या हुआ है उसे सेना और कश्मीर की जनता ही जाने।
पिछले 45 दिनों से हमारे अपने भाई, अटूट भारत के भागीदार,बराबर के हिस्सेदार, कश्मीरी नागरिक किन सख्त हालात का सामना कर रहे हैं हमें उसका इहसास भी रात भर सोने नहीं देता, दूध पीते बच्चों के लिए दूध नहीं,खाने के लिए सब्जी़ दाल और चावल नहीं,इलाज के लिए दवा नहीं, सेना के पैलेट बुलेट से आंख गंवाने, बदन छलनी करवाने वाले बच्चों व जवानों के लिए हास्पिटल में जगह नहीं, ऊपर से हर नागरिक को अलगाववादी और आतंकवादी समझ कर सेना बिलाझिझक प्रहार कर रही है, क्यों ऐसा हो रहा है?
कर्फ़्यू तो सेना की कमज़ोरी होती है, जब सारे हथियार खत्म हो जाते हैं तो कर्फ्यू लगाकर जनता को कमजो़र कर दिया जाता है, वो भी दो चार दिन, पर कश्मीर में सेना इतनी कमजो़र कैसे हो गई कि 45 दिन से कर्फ्यू हटा ही नहीं पा रही है, सेना और सरकार जवाब देती है अलगाववाद है इसीलिए,शक्ति का इसतेमाल क्या जा रहा है.
सवाल ये है कि जब सारे अलगाववादी नेता नज़रबंद हैं,तो इन्हें कौन कमांड कर रहा है?
जवाब किसी के पास हो तो बतायें. सच ये है कि सेना भड़काती है, कश्मीरी नागरिकों को यह अहसास दिलाती है
कि तुम हमारे जीती हुयी चीज़ हो, गुलाम हो,तुम्हारे साँसों पर भी हमारा हक़ है, जनता उत्तेजित हो जाती है,और फिर प्रदर्शन करती है, फिर क्या होता है,नतीजा आपके सामने है.
वैसे कश्मीर को तो शुरू से विजयी सामग्री समझा गया है.इसीलिए अब तक कश्मीर मे कुल 1लाख लोग मारे जा चुके हैं | सरकारी आंकड़ो की अगर माने तो अब तक 20000नागरिकों की मौत सेना की कार्यवाही मे हुई पर इन्हें कोलेटेरल डैमेज बोला गया | ये सच है की कशमीर में अलगाववाद है, जिसे अब सरकार आतंकवाद बता रही है. यह भी सही है कि इसे दबाने के लिए कठोर कदमो की ज़रूरत है, लेकिन इसका मतलब ये नही की इंसानियत को दरकिनार कर दिया जाये |
साथ ही यह भी सोचना पड़ेगा कि वहां आतंकवाद व अलगाववाद क्यों है? पिछले छह महीने में एनकाउंटर में करीब 80 आतंकवादी मारे गए हैं। यह कोई सामान्य संख्या नहीं है। पर आतंकवाद या अलगाववाद खत्म क्यों नहीं हो रहा है? कश्मीर के हालात बेहद चिंताजनक होते जा रहे हैं. और केन्द्रीय सरकार क्या कर रही है? प्रधानमंत्री को तो ब्लूचिस्तान की आजादी की फिक्र सता रही है। भले ही उनके अपने देश की जन्नत में महीनों से कर्फ्यू लगा हुआ है।
गृहमंत्री दिल्ली में बैठ कर बैठक पर बैठक और प्रेस कांफ्रेस कर रहे हैं, और मीडिया इसे अगला क़दम,तारीखी क़दम, और ना जाने क्या क्या बता रही है, सच ये है कि कश्मीर की जनता पर ढाया जा रहा जुल्म सिर्फ़ पाकिस्तान को नीचे दिखाने के लिए है, और ये हमारे सरकार की हारती हुयी कमजोर पालिसी की देन है, दूसरे को नीचा करने के लिए अपनों की बलि दी जा रही है. यह तरीका न तो शान्ति स्थापित कर पायेगा और न ही दहकते कश्मीर की आग को बुझा पायेगा।
सेना को वहा स्थिति को सामान्य करने और मुसीबतों को ख़त्म करने भेजा गया है ना की वहां जा कर स्थिति और गंभीर करने | भारत की सेना बहुत महान है,हम देशवासियों पर हमारी सेना के बहुत उपकार हैं जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता | लेकिन कश्मीरी भी अपने है इसी देश के निवासी हमारे भाई और बहन | सेना एक बहुत जिम्मेदार संगठन है जिससे ये उम्मीद नही की जा सकती कि वो इन अमानवीय क्रत्यो मे उलझ कर इंसानियत को ही भुला बैठे....
सरकार को चाहिये कि कश्मीरियों का विश्वास बहाल कर,उनका भरोसा जीतने की कोशिश करे, उन्हें जम्हूरियत कश्मीरियत और इंसानियत में विश्वास दिलाये। लेकिन खुद इंसानियत को याद रखे, सेना से हो रहे मानवअधिकार हनन का जायजा़ ले. और सेना की विचारधारा में कशमीरी जनता से जो नफरत रच बस गयी है उसे खत्म कराये,
बात बात पर यू.एन को खत लिखने वाले, गौ हत्या पर आंदोलन करने वाले,दलित प्रेम का दिखावा करने वाले,
राष्ट्रवाद का चोला पहन कर देश को आगे बढ़ाने की बात करने वाले, मानवअधिकार,इंसानियत पर घंटों भाषण देने वाले नेताओं,बुद्धजीवियों,कवियों,आयोगों,देशभक्तों और जानवर रक्षकों को अगर इन सब से फुरसत मिल जाये तो उनकी यह भी जिम्मेदारी बनती है कि कश्मीरी मानवजाति की रक्षा के लिए भी दो शब्द बोलें,एक क़दम उठायें,,एक ख़त लिखें,एक आंदोलन करें,और एक सच्ची रिपोर्ट दुनिया के सामने लायें...
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